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पौराणिक कथा. के अनुसार महाशिवरात्री के भगवान शिव जी पहली बार प्रकट हुये थे   भगवान शिवजी का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नी के शिवलिंग के रूप में था वो शिवलिंग ऐसा था की शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत इस्का मतलब शिवलिंग जिसकी ना शुरुआत दिख रही थी ना शेवट 

इसके बारेमे बताया जाता है की शिवलिंग का पता लगाने के लिये भगवान ब्रम्हाजी हौंस के रूप में शिवलिंग के सबसे उपरवाले भाग को देखणे की कोशिश करने रहे थे लेकीन उसमे भगवान ब्रम्हाजी को सफलता नही मिली भगवान ब्रम्हाजी शिवलिंग के सबसे उपरी भाग तक पहुंच नाही पाये aur दुसरीओर भगवान विष्णू वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार को धूंड ने की कोशिश करने रहे थे लेकीन भगवान विष्णू को आधार नाही मिला 

एक ओर कथा यह भी है की महाशिवरात्री के दिन भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में ६४ जगहों पर प्रकट हूये थे इसमे से हम केवल १२ जगह का पता है उनको हम १२ ज्योतिर्लिंग के नाम से पेहचांते है 

महाशिवरात्री के दिन उज्जैन के महाकलेश्वर मंदिर मे लोग दीपस्तंभ लगाते है ये दीपस्तंभ इसलिये लगाये जाते है की लोग शिवजी के अग्नी वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सके यह जो मूर्ती है उसका नाम लिंगोभव यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे ऐसा लिंग जीसकी न तो आदि था ओर ना अंत 

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